Monday, February 22, 2010

पुस्तक लोकार्पण

'कुछ कर न चम्पू' और 'चम्पू कोई बयान नहीं देगा' का विमोचन


8 फरवरी, 2010 को सुविख्यात लोकप्रिय कवि तथा आलोचक अशोक चक्रधर के दो व्यंग्य संग्रहों का विमोचन इंडिया हैबिटाट सेंटर के गुलमोहर सभागार में दिल्ली की मुख्यमंत्री सुश्री शीला दीक्षित ने किया। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित 'कुछ कर न चम्पू' और 'चम्पू कोई बयान नहीं देगा'--इन संग्रहों पर विचार रखते हुए सुश्री दीक्षित ने अशोक जी को 'कला से भरपूर व्यक्ति' के पद से नवाजते हुए कहा कि 'उनकी कविताएं या लेखन शुरू मे देखने में भले, हल्के-फुल्के लगें परंतु बाद में उसकी गहराई धीरे-धीरे खुलती है। इस पुस्तक की भाषा का आनंद मैं भी उठा सकती हूं, हालांकि मेरी सारी शिक्षा अंग्रेजी में हुई थी।' सुश्री दीक्षित ने पुस्तक संस्कृति की पैरवी करते हुए कहा कि 'इंटरनेट पर पुस्तक से वह संबंध नहीं बन पाता, जो पुस्तक को हाथ में लेकर बनता है, वह सीधे मन में उतर जाती है।

फूहड़ लतीफों और स्तरहीन स्त्री विरोध की तमाम मंचीय कविताओं के विपरीत अशोक चक्रधर को 'पॉपुलर' कविता में एक अलग स्कूल की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। हास्य को व्यंज्ञ में रचाने-बसाने वाले चक्रधर जी ने माना कि बात करने के लिए दो व्यक्तियों का होना जरूरी है। पुस्तक में मैंने यह दोनों अपने ही भीतर उत्पन्न किए चंपू और चाचा के रूप में यह पुस्तक प्रश्नोत्तर शैली में है। इन दोनों की बातचीत का आधार मूलभूत और सामाजिक समस्याएं हैं। यह पुस्तक हिन्दी पुस्तक संसार में यूनीकोड फॉण्ट में आने वाली पहली पुस्तक है।

सुधीश पचौरी ने लेखक के व्यक्तित्व और कृतित्व की यात्रा पर बात करते हुए कहा कि 'ऐसे आशुकवि बहुत कम हैं जो व्यंग्य की ऐसी पैनी धार बनाए रखते हैं।' उन्होंने लेखक को श्रमशील, मेधावी और रचनात्मक कहते हुए कहा कि 'हास्य को मैं जीवन के लिए अनिवार्य मानता हूं।' पुस्तक की भाषा को उन्होंने ब्रज और खड़ी बोली की मैत्री का गद्य कहा। 'चंपू' को उन्होंने अंग्रेजी के 'चैम्प' शब्द के समानार्थक स्वीकार करने की जरूरत बताया।
अन्य वक्ताओं में अरुण माहेश्वरी और उदय प्रताप सिंह रहे। 8 फरवरी का दिन, संयोग से, अशोक चक्रधर का जन्म दिवस भी है, अतः भारी संख्या में उनके मित्रों-शुभचिंतकों के मध्य उन्होंने केक काटने की रस्म भी अदा की। इस दिन के साथ ही वे 60वें वर्ष में प्रवेश कर गए। कार्यक्रम का संचालन युवा कवयित्री-चित्रकार गीतिका गोयल ने दक्षतापूर्वक किया। कार्यक्रम के अंत में काव्य-गोष्ठी भी आयोजित की गई। बागेश्वरी चक्रधर ने अपने संस्मरणों के साथ कुछ मुक्तक भी पढ़े।

हंस, मार्च 2010 से साभार

5 comments:

Tej said...

bahut bahut badhai

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

रिपोर्ट के लिए आभार. चक्रधर सर को बधाई

निर्मला कपिला said...

कई दिन से आपका ब्लाग ढूँढ रही थी आज मिल ही गया। इस विमोचन के लिये बहुत बहुत बधाई । आपकी कवितायें सुनने के लिये बहुत उत्सुक हूँ ब्लाग पर लगायें तो कृपा होगी धन्यवाद और शुभकामनायें

Ashok Chakradhar said...

तेज मनोज सुलभ सतरंगी मेरा धन्यवाद बहुरंगी।

Ashok Chakradhar said...

हां निर्मला जी, कविताएं आपको ब्लॉग पर सुनाऊंगा।