Wednesday, March 10, 2010

रोमन से मत रो मन

—चौं रे चम्पू! पिछली बात आगे बढ़ामैं का?
—कौन सी बात चचा?
—अरे यूनिकोड वारी। कोडिंग-एनकोडिंग का बताई तैनैं? यूनिकोड नै का कियौ?
—यूनिकोड ने सबसे बड़ा काम यह किया कि हर महत्वपूर्ण भाषा के लिए मानक निर्धारित करते हुए एक निश्चित एनकोडिंग प्रणाली विकसित की। यह एनकोडिंग प्रणाली कोई नई बात नहीं है। दस साल से चलन में है। लोगों को अभी तक इसका ज्ञान ही नहीं है कि यूनिकोड क्या है, और उसने क्या कर डाला है?
—तू ई समझा!
—ज़रूर चचा, ज़रूर। कितने अण्डे, कितने डण्डे यानी कितने ज़ीरो कितने एक, ये हुई कोडिंग और उनसे बनेगा क्या, ये हुई एनकोडिंग। मोटी-सी बात है। यूनिकोड की इस मानक एनकोडिंग प्रणाली से अगर मैं इंटरनेट पर किसी भी कीबोर्ड से हिन्दी में कुछ लिखता हूं तो संसार के सारे कम्प्यूटरों में हिन्दी ही खुलेगी। पहले ऐसा नहीं होता था। पहले हम ‘इस्की’ प्रणाली में विकसित किसी फ़ॉण्ट में कोई लेख भेजते थे तो हमें साथ-साथ वह फ़ॉण्ट भी भेजना पड़ता था। बिना उस फ़ॉण्ट के लेख खुलता नहीं था। कचरा दिखाई देता था। बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, चचा। या फिर लेख को स्कैन करके या फ़ोटो खींच कर उसकी भारी इमेज फाइल बनाओ।
—जे इमेज फाइल का ऐ रे?
—चचा, कम्प्यूटर में हर चीज की बनती हैं फाइलें। जो पाठ की होती हैं उनको टैक्स्ट फाइल कहते हैं, जो चित्रों की होती हैं उन्हें इमेज फाइल कहते हैं, जो ध्वनियों की फाइल होती हैं, उन्हें ऑडियो फाइल कहते हैं। ये सब डण्डे और अण्डे का ही गणित है चचा। सब कुछ बनता उनसे ही है।
—कमाल है! डण्डा और अण्डा ते ई तस्वीर दिखै और डण्डा और अण्डा ते ई पाठ आ जाय!
—यही तो ठाठ है चचा! हम बात कर रहे थे अपनी हिन्दी की। सरकारी स्तर पर सीडेक नाम की कम्पनी ने ‘जिस्ट’ तकनीक से हिन्दी का काफी काम किया था। कुछ सरकारी कार्यालयों में अभी भी वह तकनीक प्रयोग में लाई जाती है, लेकिन अब तो सरकार ने भी यूनिकोड को अपनाने के आदेश दे दिए हैं। आज कम्प्यूटर और इंटरनेट पर स्थान की कोई कमी नहीं है। अनंत सूचनाओं के लिए अनंत स्थान है। नई पीढ़ी के बच्चे-बच्चियां जिन्हें प्राथमिक शालाओं में हिन्दी सीखने को नहीं मिली और वे लोग जो हिन्दी बोलते तो हैं, लेकिन हिन्दी लिखने से भागते हैं, उनके लिए यूनिकोड एक वरदान है। भारत में कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने वाला लगभग प्रत्येक व्यक्ति रोमन कीबोर्ड को जानता है।
—सो तो है।
—हिन्दी टाइपिंग जानने वालों को रैमिंग्टन कीबोर्ड आता है और सरकारी कार्यालयों में हिन्दी में काम करने वाले रैमिंग्टन के अलावा इंस्क्रिप्ट कीबोर्ड भी जानते हैं, लेकिन आज हिन्दी के फोनेटिक कीबोर्ड से रोमन अक्षरों द्वारा भी देवनागरी प्राप्त की जा सकती है। जैसे आजकल मोबाइल पर लोग रोमन लिपि में अंग्रेजी वर्णों में हिन्दी लिखते हैं और पढ़ने वाले को रोमन लिपि में ही हिन्दी का संदेश समझ में आ जाता है। यूनिकोड ने उससे आगे का काम कर दिया।
—का मतलब?
—टाइप करो अंग्रेजी में और पाओ देवनागरी हिन्दी। हिन्दी ध्वन्यात्मक भाषा है न चचा! जैसी बोली जाती है, वैसी लिखी जाती है। आज यदि किसी को हिन्दी की पारंपरिक टाइपिंग नहीं आती है तो वह बड़े मज़े से रोमन कीबोर्ड पर देवनागरी लिपि में लिख सकता है। विदेशी कम्पनियों ने भारत के बाजार में हिन्दी को एक उपभोक्ता सामग्री के तौर पर देखा। अब गूगल, याहू, एमएसएन जैसे पोर्टलों पर और इंटरनेट ब्राउज़र्स पर हिन्दी आराम से लिखी जा सकती है।
—अंग्रेजी ते पिंड तौ नायं छूटौ ना!
—किसी भाषा से नफ़रत क्यों करें? अंग्रेज़ी भी हमारी है। यदि वह हिन्दी प्राप्त कराती है और व्यापक प्रचार-प्रसार में सहायक है तो उसे धन्यवाद देना चाहिए। असल बात तो यह है कि अंग्रेजी में टाइप करने के बावजूद स्क्रीन पर दिखाई तो हिन्दी ही दे रही है। अकेली हिन्दी नहीं भारत की सारी महत्वपूर्ण भाषाएं, यहां तक कि दाएं से बाएं दिशा में लिखी जाने वाली उर्दू भी। इसलिए रोमन से मत रो मन। कैसे भी लिख, हिन्दी लिख, उर्दू लिख। पंजाबी, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू , उड़िया, बांग्ला कुछ भी लिख। तुझे अपनी भाषा और लिपि से प्यार है, तो आज यूनिकोड की मेहरबानी से संभावना अपार है।

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

और अब यहाँ तक सम्भव है कि अंग्रेजी में लिखे को आप देवनागरी में ही पढ़िये। एक प्रोग्राम है जो अंग्रेजी को इन्टरनेशनल फोनेटिक अल्फाबेट (आईपीए) में बदल देता है। एक दूसरा प्रोग्राम मैने बनाया है जो आईपीए को देवनागरी में बदल देता है।
तो चाहें तो रोमन से छुटकारा मिल जाय। स्पेलिंग की झंझट सदा के लिये समाप्त।

शरद कोकास said...

हम तो भैया यूनिकोड आने के बाद ही कवि से ब्लॉगर हुए है । उम्दा शैली में उम्दा जानकारी ।

Parul kanani said...

sharad ji ki baat se sehmat hoon,kyonki apna bhi yahi kissa hai :)